जनपद गोण्डा में शस्य प्रतिरूप का एक विश्लेषणात्मक अध्ययन
श्याम किशोर वर्मा1, डाॅ. प्रमोद कुमार तिवारी2
1‘शोध छात्र’ (जे.आर.एफ) भूगोल विभाग, नागरिक पी.जी. काॅलेज जंघई, जौनपुर, उ.प्र.
2‘प्राचार्य एवं विभागाध्यक्ष’ भूगोल विभाग, नागरिक पी.जी. काॅलेज जंघई, जौनपुर, उ.प्र.
*Corresponding Author E-mail: shyammic@gmail.com, pktiwari61@gmail.com
ABSTRACT:
कृषि का सम्बन्ध फसलों के अन्तर्गत फसलोत्पादन तथा पशुपालन दोनों को ही सम्मिलित किया जाता है। कृषि मानव द्वारा विकसित की गई एक महत्वपूर्ण संस्कृति हैं कृषि जिसमें फसलोत्पादन को महत्वपूर्ण समझा जाता है, मानव जनसंख्या के पोषण का आधार है। भारतीय कृषि विविधतापूर्ण स्वरूप को संजोयेे हुए है। कृषि के आरम्भिक चरण में जब फसलोंत्पादन के लिए अनुकूल दशाएँ जैसे उपजाऊ मृदा, सिंचाई के लिए जल, उन्नत बीज इत्यादि उपलब्ध नहीं हो पाती थी तो एक ही प्रकार के फसलों का उत्पादन किया जाता था, लेकिन जैसे-जैसे कृषि तकनीकों का विकास होता गया फसलोत्पादन में विविधता आती गई और यहाँ तक कि एक ही क्षेत्र (खेत) पर विभिन्न प्रकार की फसलें एक साथ उगायी जाने लगी। प्रस्तुत शोध पत्र में फसल प्रतिरूप के इसी स्वरूप की चर्चा की गई है। जनपद गोण्डा की अर्थव्यवस्था कृषि एवं उससे जुड़े उद्योगों पर आधारित है। स्वतन्त्रता के समय भारत में लगभग तीन चैथाई कृषि क्षेत्र पर खाद्यानों की कृषि की जाती थी, परन्तु 1960 के दशक में हरित क्रान्ति के आगमन के फलस्वरूप लगभग 80ः प्रतिशत भूमि पर खाद्यानों का उत्पादन किया जाने लगा। इसके पश्चात् शस्य प्रारुप मे विविधता आयी और खाद्यानों का क्षेत्रफल घटकर 75 प्रतिशत रह गया। प्रस्तुत शोध पत्र मे इसी बिन्दु पर चर्चा की गई है कि विभिन्न फसलों को कितने क्षेत्रफल पर उगया जाता है और उनमे कितना परिवर्तन आया है। इसके लिए सांखिकी पत्रिका से प्राप्त आंकडो को उपयोग किया गया हैं ।
KEYWORDS: शस्यप्रतिरुप, भूमि, उपयोग, शस्य विविधता,जनसंख्या वृद्धि ।
INTRODUCTION:
शस्य प्रतिरुप का अर्थ किसी क्षेत्र मे फसलों के समय विशेष मे निश्चित क्रम मे उगाने से है, अर्थात शस्य-प्रतिरुप का तात्पर्य किसी निश्चित समय मे विभिन्न शस्यों के अन्तर्गत क्षेत्र के अनुपात से है। यह किसी क्षेत्र मे उगायी जाने वाले फसलो के अनुक्रम को प्रदर्शित करता है जो जलवायविक तथा समाजार्थिक कारको से प्रभावित होता हैं।
किसी कृषि क्षेत्र का कुल उत्पादन व उससे होने वाली आय मे वृद्धि करने के लिए तथा मृदा के उपजाऊपन को बनाये रखने के लिए विभिन्न प्रकार की फसलों को क्रम से उगाया जाता है इसी शस्य क्रम को शस्य प्रणाली कहा जाता है। भारत मे तीव्र जनसंख्या वृद्धि के परिणामस्वरुप स्वतंत्रता के पश्चात् जोतों का आकार निरंतर छोटा होता गया जिसके कारण उन जोतो पर विभिन्न प्रकार की खाद्य फसलें उगाने का प्रयास किया जाने लगा जिससे कि जनसंख्या वृद्धि के कारण खाद्यान की बढती मांगों की पूर्ति की जा सके।
शस्य प्रतिरुप एक परिवर्तनशील अवधारणा हैं जो समय और स्थान के संदर्भ मे परिवर्तित होती रहती है। विश्व के उन क्षेत्रों मे जहां प्राकृतिक विविधताएं कम मात्रा मे पायी जाती हैं वहाँ शस्य प्रारुप की विविधता का अभाव पाया जाता है। राजस्थान के कम वर्षा वाले क्षेत्रों मे किसान प्रायः बाजरा उगातें हैं इसी प्रकार असम की ब्रह्मपुत्र घाटी मे चावल की प्रधानता देखी जाती है। भारत मे अधिकांश क्षेत्रों मे कृषि अभी भी जीविकोपार्जन के साधन के तौर पर की जाती है और उनमे भी चावल और गेहूँ को मुख्य खाद्यान फसल के रुप मे उगाया जाता है। इस स्थिति में उस समय और तीव्रता देखी गयी जब 1960 के दशक मे भारत मे हरित क्रांति का आगमन हुआ। हरित क्रांति के आगमन से उन्नत किस्म के बीजों की उपलब्धता तथा वैज्ञानिक तकनीकों के प्रयोग एवं कृत्रिम रसायनिक उर्वरकों के प्रयोग से खाद्यान उत्पादन मे आशातीत वृद्धि देखी गयी, इसका प्रभाव मुख्य रुप से गेहूँ और चावल जैसी फसलों पर अधिक पडा परन्तु इसके साथ ही अन्य नकदी फसलों जैसे कपास, गन्ना, तम्बाकू आदि को भी उगाने पर जोर दिया गया। जिससे विभिन्न प्रकार के शस्य प्रारुप का विकास हुआ और उसमें परिवर्तन भी होता रहा। कृषि को दीर्घकालिक और अधिक लाभप्रद बनाने के लिए शस्य प्रारुपों मे परिवर्तन करते रहना आवश्यक है।
अध्ययन क्षेत्र-
प्रस्तुत शोध पत्र का अध्ययन क्षेत्र जनपद गोण्डा है जो उत्तर प्रदेश राज्य के उत्तर-पूर्व क्षेत्र मे अवस्थित है जिसका अक्षांशीय विस्तार 26°41’ उ. से 27°51’ उ. तक तथा देशांतरीय विस्तार 81°30’पू. से 82°06’ पूर्वी देशांतर तक है। यह उत्तर में राप्ती नदी एवं दक्षिण मे घाघरा नदी द्वारा प्राकृतिक सीमाओं से आबद्ध है। यहां मुख्यतः दो प्रकार की मृदा का विस्तार पाया जाता है प्रथम बलुई मृदा (37ः) द्वितीय दोमट मृदा (63ः) है। जनपद गोण्डा उष्णकटिबंधीय मानसूनी जलवायु प्रदेश (ब्ूह)में अवस्थित है। यहां का औसत तापमान 30ब् से 33ब् के मध्य रहता है तथा औसत वार्षिक वर्षा 1552 मिमी. है। जनपद में फसल गहनता लगभग 157ः है तथा इसका 60ः क्षेत्रफल सिंचित क्षेत्र के अन्तर्गत आता हैं।
चित्र-1
जनपद गोण्डा की कुल आबादी 3433919 हैं, जनघनत्व 858 व्यक्ति प्रतिवर्ग किमी. तथा यहां की साक्षरता दर 58ण्41ः है। जनपद की अधिकांश आबादी ग्रामीण क्षेत्रों मे ;93ण्45ःद्ध निवास करती है। जिसकी आजीविका का मुख्य साधन कृषि है।
उद्देश्य-
1ण् क्षेत्र मे शस्य प्रतिरुप का अध्ययन करना।
2ण् शस्य प्रतिरुप परिवर्तन का अध्ययन करना।
3ण् शस्य प्रतिरुप को प्रभावित करनेवाले कारकों को अध्ययन करना।
आंकडो के स्रोत एवं शोध प्रविधि:-
प्रस्तुत शोध पत्र मे मुख्य रूप से विभिन्न सरकारी कार्यालयों एवं आॅनलाइन माध्यम से एकत्रित किए गए आंकडो का उपयोग किया गया है। जिला संाख्यिकी पत्रिका, कृषि विज्ञान केन्द्र से प्राप्त द्वितीयक एवं तृतीयक प्रकार के आंकडो का उपयोग कर क्षेत्र सर्वेक्षण के अनुभवों के आधार पर उनका विश्लेषण कर निष्कर्ष पर पहुंचने के प्रयास किया गया है। ये शोध पत्रमुख्य रुप से विश्लेषणात्मक शोध पद्धति पर आधारित है।
विभिन्न फसलों के अन्तर्गत कुल क्षेत्रफल (हेक्टेयर में)
सारिणी-1
óेात- जिला सांख्यिकी पत्रिका, जनपद गोण्डा
चित्र-2
चित्र-3
शस्य-प्रतिरुप विश्लेषण:-
जनपद गोण्डा मे शस्य प्रतिरुप वितरण का अध्ययन करने से कई तथ्य उभरकर सामनें आते है जिनका विश्लेषण निम्नवत् है-
कुल धान्य फसलांे, जिसमें चावल, गेहूँ, जौ, मक्का को सम्मिलित किया गया है, का क्षेत्रफल वर्ष 2009-10 से लगातार कम होता दिखाई दे रहा है, जो वर्ष 2009-10 मे 332677 हे. से कम होकर वर्ष 2015-16 मे 320804 हे. रह गया है। इसमें सबसे अधिक गिरावट मक्का के क्षेत्रफल मे आयी जो वर्ष 2009-10 के सापेक्ष वर्ष 2015-16 मे लगभग आधा हो गया, वही चावल के कुल क्षेत्रफल मे लगातार बढ़ोतरी देखी गयी हालांकि दूसरी मुख्य खाद्य फसल गेहूँ के क्षेत्रफल मे मामूली गिरावट दर्ज की गयी। तीव्र जनसंख्या वृद्धि के परिणाम स्वरुप खाद्यानों के मांग मे वृद्धि होने एवं जनपद का अधिकांश क्षेत्र तराई होने के कारण चावल जैसी फसलों के उत्पादन क्षेत्रफल को बढ़ाने के लिए प्रेरित किया। इसी प्रकार मक्का जैसी फसलों, जिसका उपयोग मुख्य खाद्य के रुप मे न कर गौण रुप मे किया जाता है, का क्षेत्रफल कम हुआ है।
कुल दालों के सकल उत्पादन क्षेत्रफल मे वर्ष 2009-10 (24722 हे.) के सापेक्ष वर्ष 2015-16 (20102 हे.) मे गिरावट दर्ज की गयी, जिसमें सबसे अधिक गिरावट अरहर के क्षेत्रफल मे दर्ज की गयी। स्थानीय सर्वेक्षण के द्वारा ज्ञात हुआ कि छुट्टा जानवरों एवं जंगली जानवरों द्वारा फसलों को नुकसान पहुंचाया जाता है जिसकी वजह से दलहनी फसलों के साथ-साथ अन्य फसलों से भी किसानों का मोहभंग हुआ है और इस प्रकार फसलों के उगाने का क्रम भी प्रभावित हुआ है। अरहर के साथ-साथ मूंग जैसी दलहनी फसलों के क्षेत्रफल मे भारी कमी देखी गयी। वर्ष 2013-14 मे मूंग का कुल उत्पादन क्षेत्रफल 350 हे. था जो वर्ष 2015-16 मे कम होकर 37 हे. रह गया।
अन्य फसलो मे गन्ना और तम्बाकू जनपद की मुख्य वाणिज्यिक फसल है। गन्ना उत्पादन के क्षेत्रफल मे लगातार वृद्धि दर्ज की गयी परन्तु हाल ही के वर्षों में इसमे गिरावट दर्ज की गई है। वर्ष 2013-14 मे गन्ना का कुल उत्पादन क्षेत्रफल 78704 हे. से कम होकर वर्ष 2018-19 मे 71725 हे. हो गया। गन्ना का वाजिब मूल्य ना मिल पाना, लगातार उत्पादन लागत का बढना एवं कीटों/रोगों के प्रकोप से फसलों का नष्ट होना गन्ने के उत्पादन क्षेत्रफल मे कमी के महत्वपूर्ण कारण हैं। तम्बाकू को उत्पादन विशेष रुप से नवाबगंज विकास खण्ड मे किया जाता है।
निष्कर्ष
उपर्युक्त विश्लेषण से स्पष्ट होता है कि जनपद मे चालव और गेहूँ का उत्पादन मुख्य खाद्यान फसल के रुप मे किया जाता है, वही नकदी फसल के रुप मे सर्वधिक उत्पादन क्षेत्रफल गन्ना फसल के अन्र्तगत आता हैं इसका महत्वपूर्ण कारण जनपद की जलवायु दशांए एवं वहाँ की भौगोलिक विशेषताएँ है, जनपद मे चीनी उद्योग के समुचित विकास ने भी गन्ना उत्पादन करने के लिए कृषको को प्रेरित किया। इस प्रकार हम कह सकते है कि जनपद मे अभी भी मुख्य खाद्यान फसल के रुप मे चावल एवं गेहूँ की प्रधानता बनी हुई है। वहीं अन्य फसलों के उत्पादन प्रतिरुप मे काफी अन्तर दिखाई पड़ रहा है।
सन्दर्भ ग्रन्थ
1. ममोरिया, चतुर्भुज, (2020) “कृषि भूगोल”,एस.बी.पी.डी. पब्लिकेशन, आगरा।
2. हुसैन, माजिद (2014) “कृषि भूगोल” रावत पब्लिकेशन नई दिल्ली।
3. “कुरूक्षेत्र”एवं “योजना”, मासिक पत्रिका, प्रकाशन विभाग भारत सरकार, नई दिल्ली।
4. कृषि विज्ञान केन्द्र- जनपद गोण्डा
5. जिला सांख्यिकी पत्रिका- जनपद गोण्डा
6. जनगणना रिपोर्ट 2011 भारत सरकार
7. समाजार्थिक-समीक्षा, 2020, कार्यालय अर्थ एवं संख्याधिकारी, जनपद गोण्डा
Received on 23.02.2021 Modified on 14.03.2021
Accepted on 21.03.2021 © A&V Publication all right reserved
Int. J. Ad. Social Sciences. 2021; 9(1):41-45.